Friday, 11 May 2018

अक्स समस्तीपुरी की ग़ज़ल (عمر بھر سینے میں اک درد دبائے رکھا) उम्र भर सीने में इक दर्द दबाये रक्खा


ग़ज़ल / अक्स समस्तीपुरी (Urdu gazal by Aks Samastipuri)




عمر بھر سینے میں اک درد دبائے رکھا
 ایک بے نام سے رشتے کو نبھائے رکھا

उम्र भर सीने में इक दर्द दबाये रक्खा
एक बेनाम से रिश्ते को निभाये रक्खा

اور اسنے بھی بھرم میرا بنائے رکھا
 آندھیاں شرم سے ہو جائے نہ پانی پانی

था मुझे वह्मो गुमां की वो फ़क़त मेरी है
और उसने भी भरम मेरा बनाये रक्खा


لیکن افسانہ الفت کو چھپائے رکھا
سر یہی سوچ کے پیڑوں نے جھکائے رکھا

आँधियाँ शर्म से हो जाये न पानी पानी
सर यही सोच के पेड़ों ने झुकाये रक्खा

تھا مجھے وہمو گماں کی وہ فقط میری ہے
ویسے ہر بات سے رکھا اسے واقف ہم نے

वैसे हर बात से रक्खा उसे वाकिफ़ हमने
लेकिन अफ़साना-ए-उल्फ़त को छुपाए रक्खा

ایک رشتہ جسے تا عمر نبھائے رکھا
ایک رشتہ جسے میں دے نہ سکا کوئی نام

एक रिश्ता जिसे मैं दे न सका कोई नाम
एक रिश्ता जिसे ताउम्र निभाये रक्खा

کوزہ گر تجھ کو بنانا ہی نہیں تھا جب کچھ
کس لیئے چاک پہ تا عمر چڑھائے رکھا

क़ूजागर तुझको बनाना ही नहीं था जब कुछ
किस लिए चाक पे ता-उम्र चढ़ाए रक्खा

بس یہی سوچ کے اک تیر بچائے رکھا
جیتے جی بات نہ دستار پہ آنے پائے

जीते जी बात न दस्तार पे आने पाए
बस यही सोच के इक तीर बचाये रक्खा


.......
शायर - अक्स समस्तीपुरी
शायर का ईमेल- 2396arjun@gmail.com
शायर का मोबाइल नम्बर- 7282086736
शायर का पता- ग्राम-नरहान, थाना-विभूतिपुर, जिला- समस्तीपुर, पिन-848211
जनाब अक्स समस्तीपुरी जी का असली नाम अर्जुन कुशवाहा है. ये अभी नवयौवन की अवस्था में होते हुए ही प्रौढ़ शायरी में सिद्धस्त हो चुके हैं. इन्होंने स्नातक तक की पढ़ाई पूरी कर ली है और सरकारी सेवा में उच्च पद पाने के लिए तैयारी कर रहे हैं. फिलहाल ये अविवाहित हैं.

(बाएँ से) समीर परिमल, अक्स समस्तीपुरी, प्रभात सरसिज और प्रत्यूष चंद्र मिश्र


Monday, 30 April 2018

अक्स समस्तीपुरी की ग़ज़ल (ہیں اپنے آپ سے یوں بے خبر ہم) हैं अपने आप से यूँ बेख़बर हम

ग़ज़ल( Gazal) 
अक्स समस्तीपुरी (Aks Samastipuri)




हैं अपने आप से यूँ बेख़बर हम 
अँधेरा ढूंढते हैं रात भर हम

ہیں اپنے آپ سے یوں بے خبر ہم
اندھیرا ڈھونڈھتے ہیں رات بھر ہم
मुहब्बत की इबादत कर रहे हैं 
बड़े ही शान से जाएंगे घर हम
محبت کی عبادت کر رہے ہیں
بڑے ہی شان سے جائینگے گھر ہم

कोई मंज़िल नहीं इस रास्ते की
अगरचे रोज़ करते हैं सफर हम

کوئی منزل نہیں اس راستے کی
اگرچہ روز کرتے ہیں سفر ہم

खुला है मुद्दतों के बाद हमपर
गुज़ारे उम्र हैं बस उम्र भर हम

کھلا ہے مدتوں کے بعد ہم پر
گزارے عمر ہیں بس عمر بھر ہم

सफर पे हैं इसी उम्मीद के साथ 
कभी होंगे यक़ीनन हमसफ़र हम

سفر پہ ہیں اسی امید کت ساتھ
کبھی ہونگے یقیناً ہم سفر ہم


शायर - अक्स समस्तीपुरी