Friday 4 January 2019

( Some outer links on Urdu page ) اردو پیج پر کچھ بہاری لنک



1. ( Khursheed Akbar ) خورشید اقبر / (uploaded on facebook on) فیسبک پر اپلوڈ ہونے کی تاریخ 5.1.2019 / (Click here) یہاں کلک کیجئے



Wednesday 28 November 2018

رخشن ہاشمی کی غزل - دیے جلا کے ہواؤں کے منہ پہ مار آیا (रख्शां हाशमी की ग़ज़ल - दीये जला के हवाओं के मुंह पे मार आया)

غزل -1 / ग़ज़ल-1




دیے جلا کے ہواؤں کے منہ پہ مار آیا
کوئی تو ہے جو اندھیروں کا قرض اتار آیا
दीये जला के हवाओँ के मुंह पे मार आया
कोई तो है जो अंधेरों का कर्ज उतार आया

خدا سے جب بھی کڑی دھوپ کی شکایت کی
تو میری راہ میں ایک پیڑ سایہ دار آیا
खुदा से जब भी कड़ी धूप की शिकायत की
तो मेरी राह में इक पेड़ सायादार आया

سکون بانٹتی پھرتی ہوں میں زمانے میں
 نہ جانے کیوں مرے حصے میں انتشار آیا
सुकून बांटती फिरती हूँ मैं ज़माने में
न जाने क्यों मिरे हिस्से में इंतशार आया

خودی کا فیصلہ اس نے خدا پہ چھوڑ دیا
لرزتے ہاتھوں سے دامن کہیں پسار آیا
खुदी का फैसला उसने खुदा पे छोड़ दिया
लरज़ते हाथ से दामन कहीं पसार आया

سبب میں ڈھونڈ رہی تھی مری اداسی کا
ترا خیال مجھے آج بار بار آیا
सबब मैं ढूंढ रही थी मिरी उदासी का
तिरा ख़याल मुझे आज बार बार आया

ہزار بار مرا درد مسکرائے گا
ہزار بار اگر موسم بہار آیا
हज़ार बार मिरा दर्द मुस्कुराने लगा
हज़ार बार अगर मौसमे बहार आया

کیا ہے اس نے ہی غارت مرا سکون مگر
اسی کے نام پہ رخشاں مجھے قرار آیا
किया है उसने ही ग़ारत मीरा सुकून मगर
उसी के नाम पे रख़्शा मुझे क़रार आया.
...

غزل -2 / ग़ज़ल-2

دُنیا میں سبھی لوگ سکندر نہیں ہوتے
ہر سیپ کی تقدیر میں گوہر نہیں ہوتے
दुनिया में सभी लोग सिकंदर नहीं होते
हर सीप की तकदीर में गौहर नहीं होते

دُکھ درد کے انبار کہاں پر نہیں ہوتے
انسان کی اوقات سے باہر نہیں ہوتے
दुःख दर्द के अम्बार कहाँ पर नहीं होते
 इंसान की औकात से बाहर नहीं होते

"ہاتھوں کی لکیروں میں مقدر نہیں ہوتے"
انسان کی محنت سے پلٹ جاتے ہیں پاسے
 हाथों की लकीरों में मुक़द्दर नहीं होते
इंसान की मिहनत से पलट जाते हैं पासे

چِپکے ہوئے رہتے ہیں وہ احساس سے ہر پل
کچھ لوگ کبھی ذہن سے باہر نہیں ہوتے
चिपके हुए रहते हैं वो अहसास से हर पल
कुछ लोग कभी ज़ेहन से बाहर नहीं होते

 ہو جاتے ہیں وہ چُور بدلتے نہیں فِطرت
جو شیشہ صِفت لوگ ہیں پتھر نہیں ہوتے
हो जाते हैं वो चोर बदलते नहीं फितरत
जो शीशा सिफ़त लोग हैं पत्थर नहीं होते

نازک ہے بہت وقت ذرا ہوش میں آؤ
کچھ قرض ہیں ایسے جو برابر نہیں ہوتے
नाज़ुक है बड़ा वक़्त ज़रा होश में आओ
दिखते हैं क़लन्दर जो क़लन्दर नहीं होते

رخشاں جو ادا ہوتے نہیں جان بھی دے کر
دِکھتے ہیں قلندر جو قلندر نہیں ہو تے
रख्शां जो अदा होते नहीं जान भी दे कर
 कुछ क़र्ज़ हैं ऐसे जो बराबर नहीं होते.
...
شیرا - رخشن ہاشمی
शायरा - रख्शां हाशमी

رخشن ہاشمی ایک اچّھی شیرا ہیں. یہ منگر میں رہتی ہیں اور ایک سرکاری سکول میں ٹیچر ہیں. 
रख्शां हाशमी एक अच्छी शायरा हैं। ये मुंगेर में रहती हैं और एक सरकारी स्कूल में टीचर हैं.




















Tuesday 20 November 2018

جس وقت تو اے مردم زیر تراب ہوگا - اویناش امن کی غزل / अविनाश अमन की ग़ज़ल - जिस वक़्त तो ए मर्दुम ज़ेर तुराब होगा

ابر رواں سے ولی دکنی کی زمین میں پیش ہے ایک عبرتناک کلام -
बर रवां से वली दक्कनी की ज़मीन में पेश है एक इबरतनाक कलाम 

جس وقت تو اے مردم زیر تراب ہوگا 
سارے کیے دھرے کا تجھ سے حساب ہوگا
जिस वक़्त तो ए मर्दुम ज़ेर तुराब होगा
सारे किए धरे का तुझसे हिसाब होगा

بدکاروں کے لئے اک پر خیف خواب ہوگا 
نازل خدا کا ان پر اک دن عذاب ہوگا
बदकारों के लिए इक पर ख़ैफ़ ख़ाब होगा
नाज़िल ख़ुदा का उन पर इक दिन अज़ाब होगा

اڑ جایں گے جبل اور ہوگی زمیں بیاباں 
چھپنے کو کون سا پھر اس جا نقاب ہوگا
उड़ जाएंगे जबल और होगी ज़मीं ब्याबां
छिपने को कौन सा फिर उस जा निक़ाब होगा

سرکے گا ایک پل میں پھر عمر بھر کا پردہ 
وہ دن بھی اہے گا جب تو بے حجاب ہوگا
सरकेगा एक पल में फिर उम्र-भर का पर्दा
वो दिन भी हैगा जब तू बे-हिजाब होगा

قدموں میں کوئی طاقت باقی نہیں رہے گی 
افشاں کہ جس گھڑی یہ راز سراب ہوگا
क़दमों में कोई ताक़त बाक़ी नहीं रहेगी
अफ़्शां कि जिस घड़ी ये राज़ सराब होगा

شیشہ نہ دیکھ دل کی جانب ذرا نظر کر 
ساتھی نہ زندگی بھر تیرا شباب ہوگا
शीशा ना देख दिल की जानिब ज़रा नज़र कर
साथी ना ज़िंदगी-भर तेरा शबाब होगा
....
شیر. اویناش امن
शायर - अविनाश अमन

شیر. اویناش امن  शायर - अविनाश अमन




Monday 22 October 2018

اویناش امن کی غزل - طوفاں کو پہلے سر سے گزرنے تو دیجئے (अविनाश अमन की ग़ज़ल - तूफाँ को पहले सर से गुजरने तो दीजिये)

غزل / ग़ज़ल 



طوفاں کو پہلے سر سے گزرنے تو دیجئے
لہروں سے کشتیوں  کو ابھرنے  تو دیجئے
तूफाँ को पहले सर से गुजरने तो दीजिये
लहरों से कश्तियों को उभरने तो दीजिये

پہلےکہ اس سے کیجئے زلفوں  کی سجاوٹ 
رنگت  ابھی گلوں  کی   نکھرنے تو دیجئے
पहले के इस से कीजिये ज़ुल्फ़ों की सजावट
रंगत अभी गुलों की निखरने तो दीजिये

ہم آپکی دنیا سے چلے جایں گے مگر
بستی یہ پہلے دل کی بکھر نے تو دیجئے
हम आपकी दुनिया से चले जायेंगे मगर
बस्ती ये पहले दिल की बिखरने तो दीजिये

مرہم تلاش لیں گے کہیں آپ ہی میں ہم
تکلیف پہلے حد سے گزرنے تو دیجئے
मरहम तलाश लेंगे कहीं आप ही में हम
तकलीफ पहले हद से गुजरने तो दीजिये

ہم بھی سنیں گے انکی جفاؤں  کی داستان
وعدے سے پہلے انکو مکرنے  تو دیجئے
हम भी सुनेंगे उनकी जफ़ाओं की दास्तान
वादे से पहले उनको मुकरने तो दीजिये

تبدیلیوں کا شوق بھی اتنا ہے کیا حضور
-حد نگاہ کچھ بھی ٹھہرنے تو دیجئے
तब्दीलियों का शौक़ भी इतना है क्या हुज़ूर
हद्दे निगाह कुछ भी ठहरने तो दीजिये.
....
شیر - اویناش امن
शायर - अविनाश अमन
aman.avinash09@gmail.com - शायर का ईमेल आइडी شیر کا ایمیل آئیدی

اویناش امن اردو اور ہندی کے بہت اچچھے شیر اور مصنف ہیں جنکی کی کتابیں پبلش ہو چکی ہیں.  - شیر کا تعارف
शायर का परिचय- अविनाश अमन उर्दू और हिंदी के अच्छे शायर और लेखक हैं जिनकी कई किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं.






Thursday 18 October 2018

عکس سمستیپوری کی گزل - محفل میں نام اس کا پکارا گیا تھا اور / अक्स समस्तीपुरी की ग़ज़ल - महफ़िल में नाम उसका पुकारा गया था और






دن رات اسکے ہجر میں دیمک لگے لگے
دل کے تمام خانے مجھے کھوکھلے لگے

दिन रात उसके हिज्र का दीमक लगे लगे
दिल के तमाम ख़ाने मुझे खोखले लगे 


محفل میں نام اس کا پکارا گیا تھا اور
سب لوگ تھے کہ میری طرف دیکھنے لگے

महफ़िल में नाम उसका पुकारा गया था और
सब लोग थे कि मेरी तरफ देखने लगे 


افسوس فکر جاں ہی نہیں رہتی ہے ہمیں
افسوس آپ جان ہمیں ماننے لگے

अफ़सोस फ़िक्र-ए-जां ही नहीं रहती है हमें
अफ़सोस आप जान हमें मानने लगे 


جو کہتے تھے کوئی تجھے ٹھکرا نہ پائیگا
جب بات خود پہ آئی تو وہ سوچنے لگے

जो कहते थे कोई तुझे ठुकरा न पाएगा
जब बात ख़ुद पे आयी तो वो सोचने लगे


میں آج تک نہ ٹھیک سے خود کو سمجھ سکا
اک ہی دفا میں آپ مجھے جاننے لگے

मैं आजतक न ठीक से ख़ुद को समझ सका
इक ही दफ़ा में आप मुझे जानने लगे !
......

शायर- अक्स समस्तीपुरी 
 شیر- عکس سمستیپوری-
Link of the poet- Click here






Tuesday 9 October 2018

(ہیمنت داس ہم کا نغمہ - تم آئے تو ایسا لگا) तुम आए तो ऐसा लगा - हेमन्त दास 'हिम' का नग़मा

(Niche iss nagame ka video link bhi diye gaye hain. Dekhiye)


تم آئے تو ایسا لگا
دھوپ میں شیتل پون بہا
तुम आए तो ऐसा लगा
धूप में शीतल पवन बहा  
( شیتل پون = سردی ہوا शीतल पवन)

پتے پٹتے پٹتے پھول و خوشبو
پیارا پیارا ہر لمحہ
पत्ते पत्ते, फूल व खुशबू
प्यारा प्यारा हर लम्हा

روشنی میں ہوئے پرہے
تم کا اپنا سا ہے مزہ
रोशनी में हुए पराये
तम का अपना सा है मजा
(تم  اندھیرے तम)

ندی کے بہتے پانی پر
ہم نے لکھ ڈالا قصّہ
नदी के बहते पानी पर
'हिम' ने लिख डाला क़िस्सा

ہر پل میں ہے نی ترنگن
.تھرکا کر تو و متوا
हर पल में है नई तरंगें
थिरका कर तू ओ मितवा.
................
कवि- हेमन्त दास 'हिम'
شاعر - ہیمنت داس 'ہم
Send your response to -editorbiharidhamaka@yahoo.com
Listen this on video- Click here (Part1)    Click here (Part-2)


Monday 28 May 2018

डॉ. रामनाथ शोधार्थी की ग़ज़ल - प्यारे इस प्यार का मज़: है अलग (پیارے اس پیار کا مزہ ہے الگ)

प्यारे इस प्यार का मज़: है अलग
 (پیارے اس پیار کا مزہ ہے الگ)



प्यारे इस प्यार का मज़: है अलग
ग़म-ए-दिलदार का मज़: है अलग
پیارے اس پیار کا مزہ ہے الگ
غمِ دلدار کا مزہ ہے الگ
प्यारे इक़रार का मज़: है अलग
और इनकार का मज़: है अलग
پیارے اقرار کا مزہ ہے الگ
اور انکار کا مزہ ہے الگ
पूरी दुनिया हसीन है लेकिन 
तेरे दीदार का मज़: है अलग

پوری دُنیا حسین ہے لیکن
تیرے دیدار کا مزہ ہے الگ
मान मत जाना रूठकर फ़ौरन
क्योंकि इसरार* का मज़: है अलग * हठ/ज़िद करना
مان مت جانا روٹھ کر فوراً
کیونکہ اصرار کا مزہ ہے الگ
सज्द-ए-रब का लुत्फ़ अलग है मियां
सज्द-ए-यार का मज़: है अलग
سجدہِ رب کا لطف الگ ہے میاں
سجدہِ یار کا مزہ ہے الگ
गुफ़्तगू करके देख ली सबसे
तुझसे गुफ़्तार का मज़: है अलग
گُفتگو کرکے دیکھ لی سب سے
تُجھ سے گفتار کا مزہ ہے الگ
एक बोसे का भी है अपना मज़:
पर लगातार का मज़: है अलग
ایک بوسہ کا بھی ہے اپنا مزہ
پر لگاتار کا مزہ ہے الگ
दिल जो कहता है मैं वो करता हूं
दिल के मेयार का मज़: है अलग
دل جو کہتا ہے میں وہ کرتا ہوں
دل کے معیار کا مزہ ہے الگ
फूल दर फूल का अलग है मज़:
ख़ार दर ख़ार का मज़: है अलग
پھول در پھول کا الگ ہے مزہ
خار در خار کا مزہ ہے الگ
अपना-अपना मज़: है हर शै का
हर ग़ज़लकार का मज़: है अलग
اپنا اپنا مزہ ہے ہر شے کا
ہر غزل کار کا مزہ ہے الگ
'नाथ' देखे हैं बहुतों के अश'आर
तेरे अश'आर का मज़: है अलग
'ناتھ' دیکھے ہیں بہتوں کےاشعار
تیرے اشعار کا مزہ ہے الگ
........
शायर- डॉ. रामनाथ शोधार्थी
Poet-  Dr.  Ramnath Shodharthi
Mobile- 096125 01437
Social website-  https://twitter.com/shodharthi
कवि परिचय- डॉ. रामनाथ शोधार्थी प्राणीविज्ञान शास्त्र में पी.एच.डी. हैं लेकिन विशाल जनसमुदाय के बीच अपनी बिलकुल ही अलग तरह की शायरी के लिए जाने जाते हैं. इनकी शायरी एक बयान होती है जो ये समय-समय पर समाज को सम्प्रेषित करते रहते हैं. बहुत कम उम्र में अपनी अलग लीक बनाकर चलनेवाले शायरों और आलोचकों के बीच अपनी अलग पहचान बना पाने में कामयाब हुए हैं. ये अभी अविवाहित हैं.