Wednesday 28 November 2018

رخشن ہاشمی کی غزل - دیے جلا کے ہواؤں کے منہ پہ مار آیا (रख्शां हाशमी की ग़ज़ल - दीये जला के हवाओं के मुंह पे मार आया)

غزل -1 / ग़ज़ल-1




دیے جلا کے ہواؤں کے منہ پہ مار آیا
کوئی تو ہے جو اندھیروں کا قرض اتار آیا
दीये जला के हवाओँ के मुंह पे मार आया
कोई तो है जो अंधेरों का कर्ज उतार आया

خدا سے جب بھی کڑی دھوپ کی شکایت کی
تو میری راہ میں ایک پیڑ سایہ دار آیا
खुदा से जब भी कड़ी धूप की शिकायत की
तो मेरी राह में इक पेड़ सायादार आया

سکون بانٹتی پھرتی ہوں میں زمانے میں
 نہ جانے کیوں مرے حصے میں انتشار آیا
सुकून बांटती फिरती हूँ मैं ज़माने में
न जाने क्यों मिरे हिस्से में इंतशार आया

خودی کا فیصلہ اس نے خدا پہ چھوڑ دیا
لرزتے ہاتھوں سے دامن کہیں پسار آیا
खुदी का फैसला उसने खुदा पे छोड़ दिया
लरज़ते हाथ से दामन कहीं पसार आया

سبب میں ڈھونڈ رہی تھی مری اداسی کا
ترا خیال مجھے آج بار بار آیا
सबब मैं ढूंढ रही थी मिरी उदासी का
तिरा ख़याल मुझे आज बार बार आया

ہزار بار مرا درد مسکرائے گا
ہزار بار اگر موسم بہار آیا
हज़ार बार मिरा दर्द मुस्कुराने लगा
हज़ार बार अगर मौसमे बहार आया

کیا ہے اس نے ہی غارت مرا سکون مگر
اسی کے نام پہ رخشاں مجھے قرار آیا
किया है उसने ही ग़ारत मीरा सुकून मगर
उसी के नाम पे रख़्शा मुझे क़रार आया.
...

غزل -2 / ग़ज़ल-2

دُنیا میں سبھی لوگ سکندر نہیں ہوتے
ہر سیپ کی تقدیر میں گوہر نہیں ہوتے
दुनिया में सभी लोग सिकंदर नहीं होते
हर सीप की तकदीर में गौहर नहीं होते

دُکھ درد کے انبار کہاں پر نہیں ہوتے
انسان کی اوقات سے باہر نہیں ہوتے
दुःख दर्द के अम्बार कहाँ पर नहीं होते
 इंसान की औकात से बाहर नहीं होते

"ہاتھوں کی لکیروں میں مقدر نہیں ہوتے"
انسان کی محنت سے پلٹ جاتے ہیں پاسے
 हाथों की लकीरों में मुक़द्दर नहीं होते
इंसान की मिहनत से पलट जाते हैं पासे

چِپکے ہوئے رہتے ہیں وہ احساس سے ہر پل
کچھ لوگ کبھی ذہن سے باہر نہیں ہوتے
चिपके हुए रहते हैं वो अहसास से हर पल
कुछ लोग कभी ज़ेहन से बाहर नहीं होते

 ہو جاتے ہیں وہ چُور بدلتے نہیں فِطرت
جو شیشہ صِفت لوگ ہیں پتھر نہیں ہوتے
हो जाते हैं वो चोर बदलते नहीं फितरत
जो शीशा सिफ़त लोग हैं पत्थर नहीं होते

نازک ہے بہت وقت ذرا ہوش میں آؤ
کچھ قرض ہیں ایسے جو برابر نہیں ہوتے
नाज़ुक है बड़ा वक़्त ज़रा होश में आओ
दिखते हैं क़लन्दर जो क़लन्दर नहीं होते

رخشاں جو ادا ہوتے نہیں جان بھی دے کر
دِکھتے ہیں قلندر جو قلندر نہیں ہو تے
रख्शां जो अदा होते नहीं जान भी दे कर
 कुछ क़र्ज़ हैं ऐसे जो बराबर नहीं होते.
...
شیرا - رخشن ہاشمی
शायरा - रख्शां हाशमी

رخشن ہاشمی ایک اچّھی شیرا ہیں. یہ منگر میں رہتی ہیں اور ایک سرکاری سکول میں ٹیچر ہیں. 
रख्शां हाशमी एक अच्छी शायरा हैं। ये मुंगेर में रहती हैं और एक सरकारी स्कूल में टीचर हैं.




















Tuesday 20 November 2018

جس وقت تو اے مردم زیر تراب ہوگا - اویناش امن کی غزل / अविनाश अमन की ग़ज़ल - जिस वक़्त तो ए मर्दुम ज़ेर तुराब होगा

ابر رواں سے ولی دکنی کی زمین میں پیش ہے ایک عبرتناک کلام -
बर रवां से वली दक्कनी की ज़मीन में पेश है एक इबरतनाक कलाम 

جس وقت تو اے مردم زیر تراب ہوگا 
سارے کیے دھرے کا تجھ سے حساب ہوگا
जिस वक़्त तो ए मर्दुम ज़ेर तुराब होगा
सारे किए धरे का तुझसे हिसाब होगा

بدکاروں کے لئے اک پر خیف خواب ہوگا 
نازل خدا کا ان پر اک دن عذاب ہوگا
बदकारों के लिए इक पर ख़ैफ़ ख़ाब होगा
नाज़िल ख़ुदा का उन पर इक दिन अज़ाब होगा

اڑ جایں گے جبل اور ہوگی زمیں بیاباں 
چھپنے کو کون سا پھر اس جا نقاب ہوگا
उड़ जाएंगे जबल और होगी ज़मीं ब्याबां
छिपने को कौन सा फिर उस जा निक़ाब होगा

سرکے گا ایک پل میں پھر عمر بھر کا پردہ 
وہ دن بھی اہے گا جب تو بے حجاب ہوگا
सरकेगा एक पल में फिर उम्र-भर का पर्दा
वो दिन भी हैगा जब तू बे-हिजाब होगा

قدموں میں کوئی طاقت باقی نہیں رہے گی 
افشاں کہ جس گھڑی یہ راز سراب ہوگا
क़दमों में कोई ताक़त बाक़ी नहीं रहेगी
अफ़्शां कि जिस घड़ी ये राज़ सराब होगा

شیشہ نہ دیکھ دل کی جانب ذرا نظر کر 
ساتھی نہ زندگی بھر تیرا شباب ہوگا
शीशा ना देख दिल की जानिब ज़रा नज़र कर
साथी ना ज़िंदगी-भर तेरा शबाब होगा
....
شیر. اویناش امن
शायर - अविनाश अमन

شیر. اویناش امن  शायर - अविनाश अमन