Tuesday 20 November 2018

جس وقت تو اے مردم زیر تراب ہوگا - اویناش امن کی غزل / अविनाश अमन की ग़ज़ल - जिस वक़्त तो ए मर्दुम ज़ेर तुराब होगा

ابر رواں سے ولی دکنی کی زمین میں پیش ہے ایک عبرتناک کلام -
बर रवां से वली दक्कनी की ज़मीन में पेश है एक इबरतनाक कलाम 

جس وقت تو اے مردم زیر تراب ہوگا 
سارے کیے دھرے کا تجھ سے حساب ہوگا
जिस वक़्त तो ए मर्दुम ज़ेर तुराब होगा
सारे किए धरे का तुझसे हिसाब होगा

بدکاروں کے لئے اک پر خیف خواب ہوگا 
نازل خدا کا ان پر اک دن عذاب ہوگا
बदकारों के लिए इक पर ख़ैफ़ ख़ाब होगा
नाज़िल ख़ुदा का उन पर इक दिन अज़ाब होगा

اڑ جایں گے جبل اور ہوگی زمیں بیاباں 
چھپنے کو کون سا پھر اس جا نقاب ہوگا
उड़ जाएंगे जबल और होगी ज़मीं ब्याबां
छिपने को कौन सा फिर उस जा निक़ाब होगा

سرکے گا ایک پل میں پھر عمر بھر کا پردہ 
وہ دن بھی اہے گا جب تو بے حجاب ہوگا
सरकेगा एक पल में फिर उम्र-भर का पर्दा
वो दिन भी हैगा जब तू बे-हिजाब होगा

قدموں میں کوئی طاقت باقی نہیں رہے گی 
افشاں کہ جس گھڑی یہ راز سراب ہوگا
क़दमों में कोई ताक़त बाक़ी नहीं रहेगी
अफ़्शां कि जिस घड़ी ये राज़ सराब होगा

شیشہ نہ دیکھ دل کی جانب ذرا نظر کر 
ساتھی نہ زندگی بھر تیرا شباب ہوگا
शीशा ना देख दिल की जानिब ज़रा नज़र कर
साथी ना ज़िंदगी-भर तेरा शबाब होगा
....
شیر. اویناش امن
शायर - अविनाश अमन

شیر. اویناش امن  शायर - अविनाश अमन




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